सुख और दुःख मनुष्य जीवन के दो बहुत बड़े आयाम हैं, संपूर्ण मनुष्य जीवन इन्हीं दो आयामों से घिरा रहता है। परंतु मनुष्य जीवन में और भी एक आयाम है जिसे कोई बिरला ही छू पाता है, जो इन दोनों आयामों से परे है और वह है आनंद, तो चलिए आज इन्हीं तीन आयामों पर थोड़ा-सा मनन करते हैं।
सुख और दुःख को जानने से पहले हमें यह जानना आवश्यक है कि सुख और दुःख का मूल क्या है। अगर इस प्रश्न पर थोड़ा-सा मनन करेंगे तो यह जान पायेंगे कि सुख और दुःख का मूल इच्छाएं हैं वासनाएं हैं।
दुःख क्या है? दुःख एक तरह की चित्तवृत्ति है। जब कोई भी अनुभव चित्त की इच्छा के विपरीत होता है तो चित्त एक दंड के रूप में दुःख की उत्पत्ति करता है। इस वृत्ति को चित्त में नकारात्मक विचार, भावनाएँ, वाणी, कर्म आदि के रूप में अनुभव कर सकते है। इस अवस्था को दुःख की अवस्था कहा जाता है।